Thursday, July 29, 2010

महंगाई के बाद बहस नरेंद्र मोदी के अपराधों पर होगी.

महंगाई के मुद्दे पर लोकसभा में कई विपक्षी पार्टियों ने काम रोको प्रस्ताव दिया था . इनमें बहुजन समाज पार्टी , समाजवादी पार्टी,मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ,कम्युनिस्ट पार्टी ,बीजू जनता दल ,भारतीय जनता पार्टी तेलुगु देशम आन्ना द्रमुक आदि पार्टियाँ शामिल थीं. महंगाई के मुद्दे पर लगभग पूरा विपक्ष एक है. इस एकता में वे पार्टियां भी शामिल हैं जो केंद्र की यू पी ए सरकार को बाहर से समर्थन दे रही हैं.लेकिन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने प्रस्ताव को यह कह कर नामंजूर कर दिया कि काम रोको प्रस्ताव तब लाया जाता है जब सरकार अपना काम करने में पूरी तरह से विफल हो जाए और अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है . ज़ाहिर है महंगाई के मुद्दे पर पूरी तरह से नाकाम रही सरकार को घेरने का एक प्रयास नाकाम हो गया. संसद हमारे देश की राजनीति का सबसे अहम मुकाम है . सभी राजनीतिक पार्टियों का फ़र्ज़ है कि संसद के मंच पर अपनी राजनीति को प्रस्तुत करें और उसे चमकाएं . इस कोशिश में कभी कभी सफलता भी मिलती है और बाज़ वक़्त निराशा भी हाथ आती है . बुधवार का दिन लोकसभा में ऐसा ही रहा . काम रोको प्रस्ताव के समर्थक बहुत सारे दलों में बी जे पी का नाम भी था लेकिन उसकी नेता , सुषमा स्वराज कुछ इस तरह से बात कर रही थीं, मानो सारे विपक्ष को उन्होंने सरकार के खिलाफ एक मंच पर ला दिया है .बी जे पी ऐसा माहौल बनाने के चक्कर में थी कि पूरा विपक्ष उसके साथ है . यह कोशिश बी जे पी ने ६ जुलाई को भी की थी . लेकिन दोनों बार असफल रही.. रिकार्ड के लिए सच्चाई यह है कि महंगाई के केस में पूरा विपक्ष सरकार से नाराज़ है लेकिन कोई भी बी जे पी के साथ नहीं दिखना चाहता . यहाँ तक कि बी जे पी के सहयोगी दल , जे डी ( यू ) के नेता शरद यादव ने तो लोक सभा में ऐलान कर दिया कि ६ जुलाई को जिस तरह का भारत बंद हुआ था, वह किसी एक पार्टी के बूते की बात नहीं है . उनके इस बयान से बी जे पी वाले निराश हुए क्योंकि मीडिया में बी जे पी यही साबित करने की कोशिश कर रही है कि बंद का आयोजन इन लोगों ने ही किया था. बहरहाल, काम रोको प्रस्ताव में भी बी जे पी को अपने नंबर बढाने का मौक़ा नहीं मिला. काम रोको प्रस्ताव की ग्राह्यता पर हुई बहस में सभी विपक्षी दल इस तरह से शामिल हुए जैसे बहुत सारे दलों में बी जे पी भी एक है . सुषमा जी को विपक्ष की एकता की नेता के रूप में अपने आप को पेश करने का मौक़ा अन्य विपक्षी दलों ने नहीं दिया .
अपनी राजनीतिक धार तेज़ करने के चक्कर में बी जे पी ने एक खूबसूरत मौक़ा गंवा दिया . क्योंकि सच्चाई यह है कि महंगाई बढ़ रही है और सरकार के लोग उसको हवा दे रहे हैं . मिसाल के तौर पर , यह माना जाता है कि कि पेट्रोलियम पदार्थों की महंगाई एक बड़े उद्योगपति को लाभ पंहुचाने के लिए बढ़ाई गयी है . उस उद्योगपति के खिलाफ न तो कोई कांग्रेसी बोलता है और न ही कोई बी जे पी वाला क्योंकि दिल्ली के सत्ता के गलियारों में यह आम चर्चा है कि उस उद्योगपति की आर्थिक कृपा बी जे पी पर भी कांग्रेस से कम नहीं रहती.सभी . अपने देश की राजनीति के पूंजी पर आश्रित होने की इस से बड़ी मिसाल नहीं मिलेगी कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढाने वाला विभाग भी इसी पूंजीपति के अपने बन्दे के पास है . इसलिए महंगाई के मामले में सरकार की गैर ज़िम्मेदारी को सार्वजनिक मंच पर लाया जाना चाहिए . महंगाई बढ़ने के सवाल पर सरकार को कहीं से भी सही नहीं ठहराया जा सकता .पिछली नवम्बर में प्रधान मंत्री के ख़ास अर्थ शाह्स्त्री और योजना आयोग के उपाध्य्ताक्ष, मान्टेक सिंह अहलूवालिया ने ऐलान किया था कि मार्च २०१० तक कीमतों पर काबू पा लिया जाएगा.जब वे यह घोषणा कर रहे थे तो थोक मूल्य सूचकांक पर मुद्रास्फीति की दर डेढ़ फीसदे ठगी लेकिन खाद्य सामग्री पर हर साल साढ़े तेरह फीसदी की वृद्धि हो रही थी .लेकिन जनवरी आते आते महंगाई की दर १६ फीसदी हो गयी जो फरवरी में १५ फीसदी पर स्थिर हुई. प्रधान मंत्री ने तुरंत फरमाया कि बुरा वक़्त ख़त्म हो गया है .लेकिन ऐसा था नहीं महंगाई बढ़ती जा रही है और लगता है कि सरकार के बड़े नेता और मंत्री चाहते हैं कि महंगाई बढे क्योंकि ऐसा होने से उनके करीबी जमाखोरों को मुनाफा हो रहा है .

ऐसी स्थिति में बी जे पी वालोंका संसद की कार्यवाही को रोकने की गरज से नियम १८४ के तहत बहस करवाने की जिद सीधे सीधे सरकार और बाकी विपक्ष को उलझाए रखने की नीति है क्योंकि महंगाई के अलावा और बाकी किसी मुद्दे पर बी जे पी के साथ कोई भी पार्टी नहीं है और ख़तरा यह हैकि अगर लोक सभा का काम ठीक से चलने लगा तो सी बी आई के राजनीतिक इस्तेमाल पर बहस शुरू हो जायेगी और उसमें यह बात भी सामने आ जायेगी कि बी जे पी के आज के सबसे बड़े नेता, नरेंद्र मोदी के दरवाज़े पर अपराध की जांच की डुगडुगी बज रही है. .और उनकी हर कारस्तानी पब्लिक के सामने आ जायेगी और बी जे पी का अडवानी गुट यह कभी नहीं चाहेगा कि नरेंद्र मोदी किसी आपराधिक मामले में फंसें. हालांकि महंगाई पर चर्चा अगर नियम १९३ के हिसाब से करा ली जाए तो दुनिया को मालूम पड़ेगा कि महंगाई की क्या हालात हैं .लेकिन बी जे पी के अपने स्वार्थ हैं कि वह संसद का काम काज रोकती रहे.

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